आज देवशयनी एकादशी है। इस पौराणिक महत्व के दिन की मान्यता है कि श्रीहरि विष्णु भगवान आज चतुर्मासिक शयन के लिए योगनिद्रा में चले जाते हैं। प्रत्येक शुभ कार्य हेतु श्रीहरि की उपस्तिथि अनिवार्य कही गई है अतः आज से चार मास के कालखंड के लिए पृथ्वी पर कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता। इस चार मास की योगनिद्रा के बाद श्रीहरि विष्णु देवोत्थान एकादशी के दिन वापस आते हैं, जिसके बाद सभी शुभ कार्य आरंभ हो जाते हैं।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक बार इस दिन के महत्व एवं व्रत पूजन के बारे में श्रीकृष्ण भगवान से पूछा था। इसी महत्वपूर्ण दिन के बारे में देवर्षि नारद ने भी ब्रह्मदेव से पूछा जिसके प्रत्युत्तर में ब्रह्मदेव ने देवर्षि को एक कथाप्रसंग सुनाया जिसके अनुसार उन्होंने महान राजा मान्धाता के बारे में बताया।
महाराज मान्धाता एक पराक्रमी, सज्जन एवं धर्म के अनुरूप आचरण करने वाले सूर्यवंशी राजा थे। उनके राज्य में किसी प्रकार का कष्ट अथवा असुविधा किसी को नहीं थी। राजा स्वयं प्रजा को अपनी संततियों समान प्रेम करते थे एवं उनकी समस्याओं का अविलंब समाधान किया जाता था। उनके राज्य में किसी भी प्रकार की कोई भी प्राकृतिक आपदा नहीं आती थी।
एक बार राज्य में देवयोग के कारण भीषण अकाल पड़ा। प्रजा के खाद्यान्न का संकट उत्पन्न हो गया। प्रजा त्राहिमाम कर उठी। धार्मिक अनुष्ठानों पर भी रोक लग गई। अकाल से पीड़ित प्रजा राजा के पास पहुंची एवं प्रार्थना करने लगी कि ‘हे राजन! संसार के जीवन यापन का मुख्य आधार वर्षा है। हमारे राज्य में वर्षा न होने के कारण अकाल पड़ा हुआ है जिससे अन्नजल का संकट उत्पन्न हो गया है। यदि इस समस्या का समाधान न हुआ तो हमें किसी अन्य राज्य में शरण लेनी पड़ेगी’।
प्रजा की इस दारुण दुःख से उत्पन्न पुकार पर राजा को ह्रदय विदारक दुःख हुआ। राजा ने ईशप्रार्थना की एवं कुछ लोगों के साथ वन की ओर चल दिये। अनेकों ऋषि मुनियों के पास समाधान हेतु गए किन्तु समाधान कहीं न मिला। थक हार कर राजा महर्षि अंगिरा के पास पहुँचे। महर्षि अंगिरा ने आने का कारण पूछा। राजा ने अपने कष्ट का कारण बता समाधान बताने की गुहार लगाई।
इसके बाद ब्रह्मा जी के मानस पुत्र महर्षि अंगिरा ने राजा को देवशयनी एकादशी का व्रत करने को कहा। महर्षि ने कहा कि इस व्रत के पालन से वर्षा भी होगी एवं प्रजा भी सुखमय जीवन व्यतीत करेगी। इसके बाद राजा ने महर्षि के कहे अनुसार विधि विधान के साथ व्रत किया। इसके बाद राज्य में वर्षा हुई तथा प्रजा को भी अकाल से मुक्ति मिल गई।
देवशयनी एकादशी के इस पावन पर्व पर आप सभी को वात्सल्य परिवार की अशेष शुभकामनाएँ।