संघर्ष से गौरव की यात्रा है ये स्वर्ण

By August 8, 2021August 10th, 2023Blog

स्वर्ण – मानव समाज की सर्वप्रिय धातु। स्वर्ण मात्र एक धातु ही नहीं है, मानव समाज के गौरव का प्रतीक भी रहा है। परिवर्तनशील इस विश्व में, इस धातु के प्रति आसक्ति ही है जो आदि काल से परिवर्तित न हो सकी। आभूषणों से महिलाओं के सौंदर्य में अगणित वृद्धि मानी जाती है तो यहाँ भी स्वर्ण का प्रयोग ही सर्वाधिक होता है।

सोने की लंका से सोने के तमगे तक का सफर, मानव समाज के तमाम आयामों को खुद में समेटे हुए है। इस कालखंड में मानव समाज प्रगतिपथ पर बढ़ा या निम्नता के नित नए कीर्तिमान गढ़ता रहा, ये विमर्श का विषय है।

इसी बीच, खेलों के महाकुंभ, ओलंपिक में, भालाफेंक प्रतियोगिता में एक युवा अपने देश के लिए स्वर्णपदक लाता है। हो सकता है कि हमें लगे कि इसमें नया क्या है। अनेकों प्रतिभागियों को स्वर्ण मिला है, चीन से अमरीका तक की झोलियाँ भर गईं हैं तो इस एक पदक का इतना महिमामंडन क्यूँ?

जी, इस विजय में भी कुछ अनूठा नहीं है। किसी न किसी को तो जीतना ही था। तो नीरज चोपड़ा ने विजयश्री का वरण किया। निश्चित रूप से यहाँ तक आने के क्रम में हमारे विचारों से बहुत उच्च स्तर की मेहनत रही है, किस्मत भी, लेकिन यकीन जानिए, ये विजय बहुत ख़ास है। आइये, जानते हैं कारणों को जिन्होंने इस युवक को सवा सौ करोड़ लोगों को उत्सव का एक पर्व दे दिया। मनाइये, क्यूंकि इस विजयश्री का वरण अन्य तमाम विजेताओं जैसा नहीं है। कुछ अलग, कुछ खास है।

१. एथलेटिक स्पर्धा में प्रथम पदक – वो भी स्वर्ण
भारत के ओलंपिक खेलों में प्रतिभागिता के इन तमाम वर्षों में एथलेटिक स्पर्धा में ये पहला पदक है ,पहला ही स्वर्ण है। देर हुई है लेकिन शुरुआत बहुत शानदार हुई है।

२. प्राकृतिक रूप से कठिन था जीतना
भालाफेंक एक ऐसी प्रतियोगिता है जिसमें कई तथ्य देखने होते हैं। भालाफेंक में खिलाडी की ऊंचाई और वजन का बहुत महत्व होता है। भाले का रिलीज़ पॉइंट, रिलीज़ एंगल भी अहम भूमिका निभाता है। हवा के विपरीत दिशा में रिलीज़ एंगल ३४ डिग्री से कम रखना होता है। नीरज ने अपनी दौड़ तेज की, एंगल बदला और उनके भाले की दूरी बढ़ गई।
यहाँ ये भी दृष्टिगोचर है कि ९७ मीटर का रिकॉर्डधारी खिलाडी वेटल भी इन्हीं तथ्यों के कारण ८२ मीटर तक जा सका और हार गया।

३. मेहनत, समर्पण और जूनून
अपनी सफलता में व्यवधान उत्पन्न न होने के लिए, नीरज ने अपना संपर्क लोगों से लगभग ख़त्म कर लिया था। सारा ध्येय, उद्देश्य से सफलता की यात्रा पर रहा और सफलता का वरण कर लिया।

४. खेल मतलब क्रिकेट
भारतीय उपमहाद्वीप में खेलों का अर्थ, क्रिकेट तक ही सीमित है। ऐसे में भालाफेंक जैसी मेहनतकश प्रतियोगिता में भाग लेना बहुत बड़ी बात है। इस स्वर्णपदक से निश्चित तौर पर लोगों का ध्यान भालाफेंक और गोलाफेंक जैसी प्रतियोगिताओं पर केंद्रित होगा, कुछ अच्छे एथलीट आगे आएँगे और देश के मैडल बढ़ेंगे।

५. उम्र
जिस उम्र में लोग प्रेम प्रसंगों से लेकर कविताओं के खुमार में होते हैं, नीरज ओलंपिक चैंपियन बन चुके हैं। ये सफलता उन लोगों के लिए एक प्रेरणा है जो अपनी कम उम्र का बहाना बनाकर गलत राह चुन लेते हैं। ये प्रेरणा उन लोगों के लिए भी है जिसमें लोग कहते हैं कि भारतीय समाज में ३० वर्ष की आयु तक ‘करना क्या है’ इसकी भी जानकारी लोगों को नहीं हो पाती।
इस उम्र में बहकने का, फिसलने का और कहीं और निकल जाने की तमाम शंकाओं को निराधार किया है इस नवप्रदीप्त सूर्य नीरज ने।

ओलिंपिक मात्र एक स्पोर्टिंग इवेंट नहीं है, ये अपने सामर्थ्य और शक्ति से जगत को अवगत कराने का महापर्व है। इसमें निरंतरता, कड़ी मेहनत और हार न मानने वाले तेवर के जीतने का उत्सव है। यहाँ खेल ही नहीं होते, राष्ट्र चरित्रों का परीक्षण होता है, जिसमें एक युवा भारतीय ने समूचे विश्व को ‘उन ५२ सेकंड’ जन गण मन की धुन पर झूमने का अवसर दे दिया।

वात्सल्य परिवार की ओर से अनंतकोटि शुभकामनाएं!!

जय हो, विजय हो!!
वीरभोग्या वसुंधरा!!

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