मीरा और माधव: प्रेम से आध्यात्म तक

By June 10, 2021September 18th, 2023Blog

वो क्या है जो किसी भी समाज की सबसे अमूल्य निधि मानी जाती है? जिसके बिना यूनान, मिस्र, रोम जैसे साम्राज्य मिट गए लेकिन हजारों वर्षों के सतत आक्रमणों और गुलामी को झेलने के बाद भी भारतीय सभ्यता और संस्कृति अडिग और अमिट ही रही ? वो अमूल्य निधि है, अपनी वास्तविक पहचान। उस पहचान को बनाये रखने के लिए किये गए प्रयत्न, लड़े गए युद्ध और उससे भी बढ़कर, समाज के रूप में उन प्रयत्नों की कहानियों को आगे बढाकर अगली पीढ़ी तक पहुंचाना। 

विदेशी आक्रांताओं के अधार्मिक व्यवहार और अनुचित नीतियों ने अनेकों लोगों को धर्मान्तरण पर विवश किया। अत्यंत तीव्र और बहुतायत में किये जा रहे इन धर्मान्तरण के बाद भी भारत की बहुसंख्यक जनता कैसे सनातन को मानती रही, ये प्रश्न भी आपके मन में आता होगा। लाजिमी है, क्यूरिऑसिटी को जिंदा रखना ही तो जिंदगी है। इतिहास का गहन अध्ययन करने पर जो एक चीज समझ आती है वो है कि उस समय पर उत्पन्न हुए भक्ति आन्दोलनों ने सनातन धर्म की रक्षा की। धर्म की ध्वजा को पकडे रखा और भारतीय उपमहाद्वीप अपनी वास्तविक पहचान को सहेज सका। 

मीराबाई उन महान संतों में से एक हैं जिनकी भक्ति और भजनों ने भक्ति की लौ प्रज्वलित रखी और हमें सिखाया कि प्रेम का एक रुप आध्यात्म भी है। प्रेम का एक रुप प्रेम करते चले जाना है जिसमें वांछित लक्ष्य कुछ नहीं। वांछनीय कुछ भी नहीं। एक माधव एक मीरा। यही है प्रेम जिसमें मीरा माधव को ढूंढ़ते हुए रात के अंतिम पहर में भी संकीर्तन में पहुंच जाती थीं। 

यूँ आसान नहीं किसी के लिए मीरा हो जाना। माधव का नाम जपते जपते उन्होंने अपने चरित्र पर लांछन के छींटे भी झेले, मगर उफ़ न की। माधव के प्रेम को अंतिम संकल्प समझ जो किया वो वही था, जिसके लिए लोग उन्हें जानते हैं – प्रेम। 

एक रजवाड़े की बेटी, एक रजवाड़े की बहु, एक राजा की पत्नी, कैसे माँ के एक बार  माधव को दूल्हा बताने  समर्पण की अंतिम सीढ़ी पर पहुंच गईं। मीरा ने विष के प्याले को भी विश्वास के माध्यम से अमृत कर दिया। राणा के क्रोध का भय किसे जब लगन उस माधव में हो। 

मेरे तो गिरधर गोपाल, दूसरो न कोई। 

जाके सिर मोर मुकुट मेरो पति सोई। 

ये भाव लिए वो जीवित रहीं और इसी भाव से वो परलोक सिधार गईं। पीछे छोड़ गईं एक सीख, जो सिखाती है हमें कि प्रेम का वास्तविक अर्थ क्या है। प्रेम में मीरा हो जाना असंभव है, कम-से-कम आज के परिदृश्य में तो है ही। उस परिदृश्य की चर्चा लेखक ने जानबूझ कर नहीं की है। 

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मीरा माधव के इस ब्रह्माण्ड स्वरुप प्रेम को मूर्त रूप दिया गया है वृन्दावन नगर में स्थित एक रिसोर्ट में जो मीरा माधव के नाम पर बसाया गया है। इस रिसोर्ट का नाम ही है, मीरा माधव निलयम, निलयम एक तमिल शब्द है जिसका अर्थ है घर। मीरा माधव निलयम जहाँ मीरा और माधव को एक साथ स्थापित किया गया है, उनके मंदिर में। रिसोर्ट का मध्य बिंदु ही है ये मंदिर जहाँ भोजन बनता है तो नैवैद्यम नामक रसोई में, जिसे प्रसादम कहा जाता है। 

देखना हो तो वृन्दावन के वात्सल्यग्राम में आइये और कुम्भ मेले के दर्शन के साथ मीरा माधव के घर रहकर देखिये, परम आनंद की अनुभूति होगी। 

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