धनतेरस: स्वस्थ समाज का चरम बिंदु


धनतेरस सनातन उत्सव का धर्म है। उल्लास और हर्ष इस समाज के प्रतीक हैं। जितने तीज और त्यौहार सनातन धर्म में मनाये जाते हैं, उतने किसी भी अन्य पंथ, मत और संप्रदाय में नहीं। आज धनतेरस है। धन को अर्थ का एक प्रतिरूप माना जाता है जबकि सनातनी संस्कृति में अर्थ के अतिरिक्त आरोग्य और स्वास्थ्य को भी धन के रूप में महत्व दिया गया है। इसीलिए धनतेरस को भगवान नारायण के अवतार भगवान धन्वन्तरी की जयंती मनाई जाती है।

भारतीय संस्कृति में स्वास्थ्य एवं आरोग्य का महत्व, धन से अधिक रहा है। यह कहावत आज भी प्रचलित है कि ‘पहला सुख निरोगी काया, दूजा सुख घर में माया’ इसलिए दीपावली में सबसे पहले धनतेरस को महत्व दिया जाता है। यही सनातन संस्कृति है जिसका मत अनुशासित जीवन पद्धति है, जो आरोग्य महत्व निश्चित करती है।

समुद्र मंथन के दौरान कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी के दिन भगवान धन्वन्तरी अपने हाथों में अमृत कलश लेकर प्रकट हुए। मान्यता है कि भगवान धन्वंतरि विष्णु के अंशावतार हैं। संसार में चिकित्सा विज्ञान के विस्तार और प्रसार के लिए ही भगवान विष्णु ने धन्वन्तरी का अवतार लिया था। भगवान धन्वन्तरी के प्रकट होने के उपलक्ष्य में ही धनतेरस का त्योहार मनाया जाता है।

सनातन धर्म में त्योहारों का वैज्ञानिक महत्व है। इनके मानने के कारण और आधार वैज्ञानिक हैं। धनतेरस के दिन झाड़ू लेकर आने का विधान होता है। झाड़ू प्रतीक है स्वच्छता की, स्वच्छता से उत्तम स्वास्थ्य निर्मित होता है क्यूंकि चहुंओर सफाई से बीमारी पैदा करने वाले कीट पतंगों के साथ डेंगू मलेरिया का भी भय व्याप्त होता है। सफाई होने से इन कीट पतंगों के साथ बीमारी पैदा करने वाले मच्छर भी नष्ट होते हैं जिस कारण स्वस्थ समाज निर्मित होता है।

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बाजारों में खरीदारी अन्य दिनों से अधिक होती है जिससे आर्थिक दृष्टि से सरकारों की कर आधारित आय में भी बढ़ोत्तरी होती है जिससे गरीबों के निमित्त योजनाओं को अधिक सबलता के साथ क्रियान्वयित किया जाता है।

इस प्रकार कहा जा सकता है कि धनतेरस प्रतीक है सनातनी दिग्दृष्टि का, समाजोत्थान का, सबके विकास का और स्वास्थ्य को सबसे बड़ा सुख और धन मानने की विचारधारा का। धनतेरस आगमन है दीपावली का, जिससे सुख समृद्धि की प्रतीक माँ लक्ष्मी धरती पर आती हैं, सभी पर अपनी कृपा बरसाती हैं। धनतेरस अर्थात सुख, सौभाग्य और समृद्धि का संस्मरण। धनतेरस अर्थात आरोग्य आधारित समृद्ध समाज का निर्माण जिसमें ‘आरोग्यं धन सम्पदा’ का आह्वान किया जाता है।

धनतेरस की प्रामाणिक कथा:-
दानवों का राजा बलि बहुत पराक्रमी राजा था। कहते हैं कि राजा बलि के भय से देवता सदैव त्रस्त रहते थे। आज के दिन, बलि के भय से देवताओं को मुक्ति मिली थी और बलि ने जो धन-संपत्ति देवताओं से छीन ली थी उससे कई गुना धन-संपत्ति देवताओं को मिल गई। इस उपलक्ष्य में भी धनतेरस का त्योहार मनाया जाता है।

धनतेरस और स्वर्ण

धनतेरस के दिन सनातन समाज में स्वर्ण क्रय केंद्रों में अधिकाधिक मात्रा में क्रय होता है। कहा जाता है कि इस दिन स्वर्ण आभूषणों का आगमन घर में सौभाग्य और समृद्धि लेकर आता है। जीवन में माँ लक्ष्मी की उपस्थिति सहज सुलभ हो जाती है। इस दिन लिए गए आभूषण पहन महिलाएँ स्वयं माँ लक्ष्मी का रूप पाती हैं, उनके होने से ही घर मंदिर सा पुण्यतीर्थ हो जाता है। ये है सनातन की सुंदरता, जहाँ महिलाओं का सम्मान ही पुरुष के पौरुष का चरम बिंदु है, जिसमें कठिन परिश्रम से अर्जित किये गए धन से जो आभूषण क्रय किये गए हैं, वो निमित्त हैं ‘नारी तू नारायणी’ जैसी विचारधारा के।
ये है धनतेरस का सामाजिक महत्व, जिसमें महिलाओं का सम्मान ही धर्म को धारण करने का एक साधन है। यही है धनतेरस जिसमें महिलाओं के सम्मान से ही सुख समृद्धि अर्जित की जाती है, का भाव हर क्षण सभी को सदैव धारण किये रहता है।

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