गोवर्धन पूजा: प्रकृति पूजन का पर्व


सनातन की धार्मिक मान्यताओं का आधार प्रकृति रही है। हमारी आस्थाओं का केंद्र प्रकृति रही है जिसका सबसे बड़ा उदाहरण है गोवर्धन पूजा और यम द्वितीया स्नान जिसे गोवर्धन पूजा के अगले दिन हर्षोल्लास से मनाया जाता है। गोवर्धन पूजा भगवान श्रीकृष्ण ने प्रारम्भ की थी। भाई दूज का पर्व उससे बहुत पहले से था, कृष्ण ने उस दिन गोवर्धन को भी पूजने की परम्परा शुरू की।

भाई कौन होता है? जो आपका पोषण करे, आपको साहस दे, और कठिन समय हो या विपत्ति, स्वयं छत बन कर आप की रक्षा करे! इसीलिये लड़कियां अपने छोटे भाई को भी भइया कहती हैं कहीं कहीं। गोवर्धन पशुओं के लिए चारा, फसलों के लिए जल, औषधि आदि प्रदान करते थे। क्रोधित इंद्र ने जब नन्द गांव को वर्षा से डूबो देने का प्रयास किया तब भी गोवर्धन ने रक्षा की! भावुक जनमानस ने उन्हें भइया कहा, स्त्रियों ने उनकी प्रशंसा में गीत रचा, तभी वे लोक के भइया हुए।

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लोक के रङ्ग अद्भुत होते हैं। यहाँ गोबर से यमलोक बनता है, जिसमें यमराज, उनकी बहन यमुना और सांप, बिच्छू आदि विषैले जीवों की प्रतिमाएं बनती हैं। साक्षात यमलोक, फिर लड़कियां अधिकार पूर्वक उस यमलोक में घुस कर ओखल से कूट देती हैं यम को, शायद यह संदेश देती हों कि मेरे भाई की ओर देखा भी तो कूट देंगे!

कथा कुछ यूँ है कि आज के दिन यमराज अपनी बहन यमुना के यहाँ गए थे और उन्हें बचन दिया था कि इस दिन जो बहन अपने भाई के लिए प्रार्थना करेगी उसके भाई की अकाल मृत्यु नहीं होगी। इसीलिए आज यम यमुना की पूजा होती है और लड़कियां अपने भाई को तिलक लगा कर उसके दीर्घायु के लिए प्रार्थना करती हैं।

भाई दूज पर यम द्वितीया पर स्नान का भी विधान है। इस स्नान के माध्यम से यमराज के आशीष से लोग यम के पाश से मुक्त हो जाते हैं। अकाल मृत्यु से सुरक्षा का भाव मन में सुनिश्चित हो जाता है। इन्हीं अलौकिक पर्व उत्सवों का संगम है सनातन। ये पर्व देव-उत्थान के पर्व हैं। इन्हीं के साथ देव उठ जाते हैं। शादी विवाह की शहनाई बजने लगती है। घरों में खुशियाँ फैल जाती हैं।

सनातनी संस्कृति की जय हो, धर्म की विजय हो, अधर्म का नाश हो !!

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