इतिहास के माथे पर वीरता का तिलक: काकोरी कांड

By August 9, 2021August 10th, 2023Blog

९ अगस्त १९२५ सिर्फ एक तारीख नहीं, इतिहास के सबसे रौशन दस्तावेजों पर वीरता का हस्ताक्षर है। उस रात आसमान में तारे कुछ ज्यादा टिमटिमा रहे थे। रात कुछ उजली सी थी, तारे मानो इंतजार में पलकें बिछाये थे, उस घटना के, जिसने अंग्रेजों की चूलें हिला कर रख दी थीं। ये घटना काकोरी कांस्पीरेसी के नाम से लिखी, पढ़ी गई लेकिन ये घटना राष्ट्र चेतना को जगाने वाली साबित हुई।


असहयोग आंदोलन की वापसी के बाद कांग्रेस दो गुटों में बंट गई थी। इसमें से कुछ युवाओं ने हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन की नींव रखी जिसमें रामप्रसाद बिस्मिल और सचिंद्र नाथ सान्याल प्रमुख थे। यह दल अंग्रेजी हुकूमत को भारत छोड़ने पर विवश करना चाहता था। पंडित रामप्रसाद ‘बिस्मिल’, अशफ़ाक़ उल्लाह खान, सच्चिन्द्रनाथ सान्याल, चंद्रशेखर आज़ाद, राजेन्द्रनाथ लाहिरी इनमें प्रमुख सदस्य थे।


इस दल की विचारधारा स्पष्ट थी। हिंसा को रोकने का उपाय, प्रत्युत्तर में की गई अधिक हिंसा ही है। अंग्रेजों से डरे हुए हिन्दुस्तानियों का डर, अंग्रेजों के मन में भर, उन्हें भगाना इनका मकसद था। १९२५ तक अनेकों क्रियाकलापों के माध्यम से इस दल ने अंग्रेजों को समझाने का प्रयास किया कि भारत का युवा अब उठ खड़ा हुआ है। वो ‘टिट फॉर टैट’ की नीति में विश्वास रखता है।

विश्व का प्रत्येक युद्ध और उसका नीति निर्धारण ‘अर्थ’ तय करता है। हथियारों की व्यवस्था से रसद के सामान तक, प्रशिक्षण से आधुनिकीकरण तक, ‘अर्थ’ सबसे प्रमुख भूमिका निभाता है। भारत के भाग्य का निर्धारण करने वाला पानीपत का अंतिम युद्ध इसका सबसे बड़ा प्रमाण है जहाँ मराठों ने अब्दाली से भूखे पेट लड़ाई लड़ी थी। दूसरी ओर अब्दाली को इस संकट का सामना नहीं करना पड़ा, जिससे इस युद्ध का परिणाम निश्चित हो गया था।


हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन को हथियारों के लिए धन की कमी पड़ने लगी तो बैठक बुलाई गई, विचार विमर्श हुआ, तय किया गया कि हिंदुस्तानी पैसे का इस्तेमाल हिंदुस्तान की आज़ादी में होगा। उन नरसिंहों ने अंग्रेजों के कब्जे में भारतीय खजाने को छीन लेने की योजना बनाई। इसी घटना को काकोरी कांड के नाम से जाना जाता है।


सहारनपुर से लखनऊ जाने वाली ट्रेन में जाने वाले खजाने को छीन लेने की योजना पर काम शुरू हुआ। राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाकउल्ला खान, राजेंद्र लाहिड़ी, चंद्रशेखर आजाद, सचिंद्र बख्शी, केशव चक्रवर्ती, मनमथनाथ गुप्ता, मुरारी लाल गुप्ता (मुरारी लाल खन्ना), मुकुंदी लाल (मुकुंदी लाल गुप्ता) और बनवारी लाल काकोरी कांड में शामिल प्रमुख क्रांतिकारी थे।


काकोरी काण्ड के उद्देश्य

काकोरी कांड का उद्देश्य एक क्रांति के माध्यम से भारत को ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन से मुक्त करना था जिसमें सशस्त्र विद्रोह शामिल था। बल के माध्यम से ब्रिटिश प्रशासन से धन लेकर एचआरए के लिए धन प्राप्त करना, भारतीयों के बीच हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन की सकारात्मक छवि बनाना और न्यूनतम क्षति के साथ एक ब्रिटिश सरकार पर हमला करना इस दल के प्रमुख उद्देश्य थे।


काकोरी कांड घटनाक्रम


लूट की योजना राम प्रसाद बिस्मिल और अशफाकउल्लाह खान ने बनाई थी। इसे बिस्मिल, खान, चंद्रशेखर आजाद, राजेंद्र लाहिड़ी, शचींद्र बख्शी, केशव चक्रवर्ती, मुरारी लाल खन्ना (गुप्ता), बनवारी लाल, मुकुंदी लाल गुप्ता और मनमथनाथ गुप्ता ने अंजाम दिया था। निशाने पर गार्ड केबिन था, जो लखनऊ में जमा किए जाने वाले विभिन्न रेलवे स्टेशनों से एकत्र किए गए धन को ले जा रहा था। हालांकि क्रांतिकारियों द्वारा किसी भी यात्री को निशाना नहीं बनाया गया था, लेकिन गार्ड और क्रांतिकारियों के बीच गोलीबारी में अहमद अली नाम का एक यात्री मारा गया था। इससे यह हत्या का मामला बन गया।


८ अगस्त १९२५: हथियार खरीदने के लिए सरकारी खजाने को लूटने का फैसला बैठक में लिया गया।
९ अगस्त १९२५: क्रांतिकारियों ने सहारनपुर से लखनऊ के लिए काकोरी के पास नंबर 8 डाउन ट्रेन को रोका और गार्ड केबिन से 8000 रुपये लूट लिए। ब्रिटिश प्रशासन ने क्रांतिकारियों को गिरफ्तार करने के लिए एक अभियान शुरू किया।
२६ सितंबर १९२५: राम प्रसाद बिस्मिल को औपनिवेशिक अधिकारियों ने गिरफ्तार किया। मुकदमा २१ मई १९२६ को ए.हैमिल्टन के सत्र न्यायालय में आगे बढ़ता है।
१९२६: अशफाकउल्ला खान और शचींद्र बख्शी को मुकदमे की समाप्ति के बाद गिरफ्तार किया गया।


घटना के बाद कई क्रांतिकारी लखनऊ भाग गए। आधिकारिक रिकॉर्ड के अनुसार, मुकदमे के दौरान ४० लोगों को गिरफ्तार किया गया था। चंद्रशेखर आजाद, जिन्हें पकड़ा नहीं जा सका, ने एचआरए को पुनर्गठित किया और १९३१ तक संगठन चलाया। २७ फरवरी को पुलिस के साथ गोलीबारी में उन्होंने गंभीर रूप से घायल होने के बाद खुद को गोली मार ली।


काकोरी कांड ब्रिटिश औपनिवेशवाद के चेहरे पर पड़ा एक करारा थप्पड़ था, जिसने उनकी ‘अहम ब्रह्मास्मि’ वाली मानसिकता को चोट पहुंचाई। इस घटना ने अनेकों युवाओं को क्रांतिकारी विचारों के साथ जोड़ा।


काकोरी कांड का अंतिम फैसला जुलाई १९२७ में सुनाया गया था। अदालत ने सबूतों के अभाव में लगभग १५ लोगों को छोड़ दिया था। राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाकउल्लाह खान, ठाकुर रोशन सिंह, राजेंद्र लाहिड़ी को मौत की सजा दी गई। जबकि सचिंद्र बख्शी और सचिन्द्र नाथ सान्याल को पोर्ट ब्लेयर, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में सेलुलर जेल में निर्वासन की सजा सुनाई गई थी।


काकोरी कांड एक ऐतिहासिक हस्ताक्षर है अन्याय के विरोध में डटकर खड़े होने की। हिंसा के प्रत्युत्तर में इक्वल एंड अपोजिट रिएक्शन की। स्वाभिमान से चलने और सबका सम्मान करने का सबक याद कराने की।

आज काकोरी कांड की ९६वीं वर्षगाँठ पूरे देश में मनाई गई। इन क्रांतिवीरों को श्रद्धासुमन अर्पित किये गए। इन वीर नरसिंहों को वात्सल्य परिवार का शत शत नमन।

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