स्वाबलंबन से स्वाभिमान की अनंत यात्रा का पर्याय: संविद एक्सपर्ट स्कूल


समाज की जिस आधारभूत संरचना में हम रहते हैं, उसके सबसे निचले पायदान पर जो वर्ग आता है, उसे महिला कहते हैं। कहने को सामाजिक उत्थान किसी भी वर्ग का नहीं हो सकता, यदि महिलाओं की सहभागिता और साझेदारी न हो। ये एक विस्मयकारी सत्य है कि विश्व को नारी सम्मान का सूत्र हम भारतवासियों ने दिया है तो महिलाओं के विरुद्ध आपराधिक प्रकरण भी हमारे समाज के बीच ही होते हैं। दहेज़ के लिए प्रताड़ना हो अथवा उन्हें घर से निकालना, संख्या ऐसे कुकृत्यों की बढ़ रही है जो एक सभ्य समाज के रूप में चिंतनीय और गंभीर विषय है।

महिलाओं के सामाजिक उत्थान की योजनाओं के साथ बातें बहुत होती हैं। समाज इस विषय पर निःसंदेह चिंतित भी है और अपने सामर्थ्य के अनुसार उपाय भी कर रहा है। महिला उत्थान एक विषय है लेकिन उन्हें स्वाभिमानी बनाना, उनके अर्थ तंत्र को सुदृढ़ करना और उन्हें अपने पैरों पर खड़ा करना ही सही अर्थों में महिला सशक्तिकरण है, जिसके अर्थ को कुछ लोगों ने गलत संदर्भ में ही प्रस्तुत किया है।

महिलाओं के इस आर्थिक रूप से वंचित वर्ग में एक वर्ग ऐसा भी है, जो परित्यक्त है। उन्हें अकेले छोड़ दिया गया है। जीवन को सही अर्थों में देखने की दृष्टि उन माताओं बहनों के पास नहीं है। किन्हीं नारी निकेतनों, वृद्धाश्रमों आदि में खुद को समेटती इन महिलाओं की, इनके स्वाभिमान की, आदर की, सम्मान की चिंता एक सभ्य समाज होने के नाते हमें ही करनी होगी। कुछ सनातनी संत ऐसे परित्यक्त माताओं को सदा से आश्रय दे रहे हैं, सम्मानपूर्वक। उनके स्त्रीत्व की, शील की, उनकी मुस्कान और स्वाबलंबन की रक्षा अपने वात्सल्य रूपी चादर के आवरण से हमेशा हुई है, चाहे अहिल्या के उद्धारक प्रभु श्रीराम हों, अथवा माता सीता का आतिथ्य करते महर्षि वाल्मिकी।

वात्सल्यग्राम में परमपूज्य दीदी माँ साध्वी ऋतंभरा ने भी इसी आतिथ्य की सेवा में अपना जीवन समर्पित कर दिया है। परम पूज्य दीदी माँ जी की पहचान एक भगवाधारिणी साध्वी की है तो उनके विराट व्यक्तित्व का एक छुपा हुआ पहलु है वात्सल्य। अनगिनत बच्चों को, महिलाओं को, एक ऐसे बंधन में बांधने की परिकल्पना को उन्होंने वात्सल्यग्राम नामक मूर्तरूप से साकार किया है। इन महिलाओं को वात्सल्यग्राम में आवास, पोषण एवं स्वास्थ्य संबंधी आवश्यकताओं की प्राप्ति ही नहीं होती, अपितु उनके रिक्त जीवन में संबंधों के पुष्पों द्वारा पल्लव खिलाए जाते हैं। एक महिला वात्सल्य की धूनी अपने ह्रदय में जला लेती है जिसकी सुगंध से उस बच्चे का भी जीवन संवर जाता है जिसका कोई नहीं। वैसे भी दीदी माँ जी कहती हैं –

“विश्वनाथ के इस विश्व में कोई अनाथ कैसे हो सकता है?”

इन बच्चों को जहाँ पोषण के लिए गौमाता के दूध से लेकर एक केंद्रीय शिक्षा बोर्ड द्वारा संचालित विद्यालय तक की सुविधा उपलब्ध है जहाँ मुफ्त शिक्षा, वस्त्र, स्वास्थ, स्टेशनरी, आवास, भोजन जैसी बुनियादी सुविधाएं प्राप्त होती हैं। विद्यालय में उन्हें रोबोटिक्स, थ्री डी प्रिंटिंग, एनसीसी, घुड़सवारी, टेनिस कोर्ट, संगीत एवं नाट्य अकादमी, अंतर्राष्ट्रीय कार्यक्रमों के माध्यम से अमेरिकी स्कूलों का एक्सपोजर मिलता है जिससे वो किसी भी प्रतियोगिता में खुद को किसी भी अन्य बच्चे से कमतर समझें।

वहीं इन माताओं बहनों को मिलता है सामाजिक सुरक्षा का अधिकार, करुणामयी दीदी माँ का सान्निध्य, प्राकृतिक निकटता एवं इन सबसे बढ़कर, स्वाबलंबन से स्वाभिमान की यात्रा जिसे संविद एक्सपर्ट स्कूल कहा जाता है।

संविद एक्सपर्ट स्कूल एक प्रयास है, महिलाओं को स्वाबलंबी बनाने का, उनके आर्थिक पक्ष को सुदृढ़ करने का, उनकी क्रियात्मक रचनात्मकता को उनके मजबूत भविष्य की नींव के लिए सुदृढ़ करने का। संविद एक्सपर्ट स्कूल में कढ़ाई, बुनाई, सिलाई, सॉफ्ट टॉयज, दीये, अगरबत्ती, पापड़, बड़ी आदि बनाने का प्रशिक्षण मिलता है। इसके साथ साथ यहाँ चूड़ी, कड़े, मेकअप का सामान, ब्यूटी पार्लर ट्रेनिंग जैसे रोजगारपरक कोर्स पढ़ाए जाते हैं।

संविद एक्सपर्ट स्कूल में महिलाओं के साथ विशिष्ट बच्चों का भी प्रशिक्षण होता है जिसमें वे दीये, अगरबत्ती, सॉफ्ट टॉयज बनाने का प्रशिक्षण लेते हैं। इन बच्चों में ऑटिज्म, सेरिब्रल पाल्सी, डाउन सिंड्रोम जैसी समस्याएँ होती हैं, जिन्हें उपयुक्त आवासीय सुविधाओं एवं प्रशिक्षित ट्रेनर्स द्वारा चिकित्सकीय सहायता उपलब्ध कराई जाती है।

एक समाज के सभ्य होने के लिए आवश्यक है कि ऐसे प्रयोगों, प्रकल्पों एवं परियोजनाओं का सहयोग किया जाए। संवाद स्थापित कर इनके मार्गदर्शन से लेकर सहयोग तक, हर प्रकार की मदद की जाए। संविद एक्सपर्ट स्कूल की इन महिलाओं के सामर्थ्य को सम्मानित करें। इन्हें इनकी जिजीविषा, उत्कट एवं स्वाबलंबन के लिए हाथ बढ़ाया जाए, मिलाया जाए, आगे बढ़ाया जाए, ताकि भारतीय समाज का सही अर्थों में मानी बदल जाए, वही जो दीदी माँ कहती हैं –

“विश्वनाथ के इस विश्व में कोई अनाथ कैसे हो सकता है।”

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