माँ
उपरोक्त शब्द भारतीय सांस्कृतिक विशेषताओं का साम्य है। संस्कृति मतलब जीवन जीने का सलीका, तरीका, तौर और विशेषताएं, जिनके माध्यम से हम जीवन को सार्थक करते हैं। जीवन जिसके स्तर को उच्चपदीय बनाने को, मनाने को, दूसरों को सभ्यता सिखाने को, भारतीय समाज ने शक्ति को केंद्र में रखा है।
शक्ति, जिसका अर्थ है महादेव जिसके वियोग में तांडव कर दें, राम जिनके वियोग में प्रकृति प्रदत्त साधनों का साधक बन साध लें समुद्र को भी, नष्ट भ्रष्ट कर दें स्वर्णिम लंका को भी, जिनके सम्मान की रक्षा हेतु एक असभ्य हिंसक राक्षकदल को समाप्त कर दें, जिनके सम्मुख महिष असुर और रक्तबीज भी प्राणों की भीख मांगें, वो शक्ति इस राष्ट्र की आत्मचेतना का चरम और परम प्रतीक रही हैं।
भारत की संस्कृति में महिलाओं का सम्मान इस स्तर तक रहा है कि देश को ही माता कहा गया है। जननी और जन्मभूमि को बराबर का महत्व है। अपने देश को हम माँ कहते हैं, प्रकृति को माँ कह छठ जैसा त्योहार मनाते हैं, नवरात्रों में कन्यापूजन घर घर में होता है जहाँ बेटियों के पैर धोकर उन्हें पूजा जाता है। शादियों में आज भी कन्यादान होता है, जिसे पवित्र और पुण्यफल अर्जित करने का माध्यम भी माना जाता है। गौ को माता मान घर से निकलने पर गुड़ खिलाया जाता है, पहली रोटी निकाली जाती है, हमारी महिला शक्ति के प्रति सम्मान का भाव दर्शाती है।
कालांतर में, उसी देश में अपराध भी महिला केंद्रित होकर रह गए हैं। दहेज़ हत्या, घरेलू हिंसा, यौन उत्पीड़न, अपहरण, ऑनर किलिंग जैसी समस्याएं दिन प्रति दिन बढ़ती जाती हैं। इन समस्याओं के उन्मूलन के लिए सरकार बहादुर अनेक प्रयास करती है। कठोरतम कानून लेकर आती है लेकिन परिणाम वही ढाक के तीन पात रहता है।
इन परेशान करती हृदयविदारक आपराधिक ख़बरों के बीच वृन्दावन के हृदयस्थल में एक ग्राम ऐसा है जहाँ “यत्र नारी पूज्यन्ते” की असल परिभाषा गुंथी हुई है। जहाँ मातृ शक्ति के अनुसार व्यवस्थाएं चलती हैं और महिला मतलब वो जो पूज्यनीय है – सभी के लिए। यहाँ सभी सम्मान में प्रणाम करते हैं, नमो नारायण से सम्बोधित करना आम प्रथा है। अनेकों प्रकल्पों की मुख्यकर्ता महिलाएं ही हैं। इस वात्सल्य के गांव को वात्सल्यग्राम कहते हैं।
वात्सल्यग्राम की परिकल्पना परम पूज्य दीदी माँ ऋतंभरा जी ने की। वात्सल्यग्राम के केंद्र में समाज में त्यक्त महिलाओं को एक छत के नीचे लाकर आत्मीयता के संबंधों में बांध दिया जाता है। वात्सल्यग्राम का स्वरुप द्वापरयुगी है। यहाँ प्रेम रस बरसता है। इस ग्राम में मीरा के प्रेम को माधव का साथ मिलता है, मंदिर में दोनों एक साथ विराजते हैं, जो अन्यत्र कहीं नहीं मिलता।
माँ सर्वमंगला पीठम की स्थापना का पुण्यफल भी वात्सल्यग्राम को मिला है, जिसके आँगन में, सत रज तम जैसे गुणों की अवधारणा के अनुरुप अपने इतिहास और गौरव को समेट आने वाली पीढ़ियों को शिक्षित ही नहीं, संस्कारित भी करेगा।
व्यक्ति विशेष के अन्तःकरण में सभी उत्तरों का मूल होती है माँ, जननी भी और जन्मभूमि भी। इसी कारण पिछले वर्ष लगे लॉकडाउन में पलायन करती हज़ारों की भीड़ अपनी माँ अपने गाँव की ओर पैदल ही चल दी। उन्हें पता था कि अपनी जन्मभूमि अपनी गोद में लेकर भूख लगने पर खिला देगी, धूप में छाँव करेगी, मूलभूत आवश्यकताओं की कमी नहीं होगी।
महिलाओं को हमेशा कमजोर और पीड़ित कहा गया है, लिखा गया है, समझा गया है। उन्हें इनडोर गेम्स खेलने को कहा गया है क्यूंकि बाहर मैदान में वो चोटिल हो सकती हैं। वात्सल्यग्राम में स्थित संविद गुरुकुलम स्कूल में स्थापित खेल अकादमी में घुड़सवारी कराई जाती है, इन्ही कमजोर दिखती बालिकाओं को।
विरोधाभास देखिये, इस घुड़सवारी के माध्यम से सर्वसमाज को जो सन्देश मिलता है, वो ये कि लड़कियां सिर्फ बोर्ड परीक्षाओं की टॉपर ही नहीं, लक्ष्मीबाई सी घुड़सवार भी हो सकती हैं।
वात्सल्यग्राम नारीवाद की वास्तविक परिभाषाओं को परिलक्षित करता है, इसके अधिकतर सेवा प्रकल्पों की जिम्मेदारी महिलाओं के हाथ है। विशिष्ट बच्चों के लिए बनाया गया वैशिष्ट्यं जैसे प्रकल्प हों या संविद गुरुकुलम जैसे विद्यालय जहाँ रोबोटिक्स से 3 डी प्रिंटिंग तक की पढाई कराई जाती है, नृत्य से कला तक अनेकों विषयों में बालिकाओं को पारंगत किया जाता है अथवा संविद एक्सपर्ट स्कूल जैसे स्वाबलंबन के शिल्पकेंद्र, महिलाओं की सफल व्यवस्था की तस्वीर दिखती है।
समाज को सभ्य, भयमुक्त और बेहतर स्थल बनाने के साथ अपराधमुक्त करना है तो वात्सल्यग्राम की इस भावना को जनजन तक पहुँचाना होगा। भाव जिसमें महिलाओं को सम्मान मिलता हो, समान नहीं थोड़े अधिक अधिकार मिलें, शीर्ष पदों पर उनकी नियुक्ति हो, तो अपने आप महिलाओं के प्रति सम्मान का भाव आएगा, अपराध कम होंगे।
वात्सल्यग्राम की इस मानव की मनःस्थिति को सुधर सुदृढ़ करने के प्रण के साथ आप हैं, तो सहयोग कीजिये, हाथ बढ़ाइए, साथ दीजिये, आगे बढ़ाइये – मातृशक्ति के पूज्य होने के भाव, संस्कार और सम्मान को।