सार्वभौमिक शिक्षा का नवाँकुर: कृष्ण ब्रह्मरतन विद्या मंदिर


शव से शिव होने की मंगलमय यात्रा है शिक्षा। मनुष्य के अंतस के तमस को हर लेने के सामर्थ्य का संबोधन है शिक्षा। शिक्षा है तो मनुज, नहीं तो पाशविक वृत्तियों का समुच्चय है मनुज। शिक्षा समाधान है, शिक्षा सामर्थ्य और पौरुष भी, मन के निर्मलतम भावों को साकार करती चेतना का पर्याय है शिक्षा। साधारण व्यक्ति को विशिष्ट व्यक्तित्व और विशिष्ट व्यक्तित्व को एक विचार में परिवर्तित करती संकल्पना है शिक्षा।

ईश्वर रचित पर विचरते अनेकों जीव जंतुओं, प्राणियों, पशु पक्षियों में मनुष्य को सर्वश्रेष्ठ होने की उपमा, स्वयं माँ प्रकृति ने दी। इस विवेक और बुद्धि के परिष्करण का मार्ग उसे शिक्षा ने ही सुझाया है। शिक्षा मानव होने की कसौटी है अन्यथा भावभंगिमाओं से दैनिक क्रियाकलापों तक, मनुष्य पशुओं से भिन्न कहाँ है?

शिक्षा की इस अनुपम उपयोगिता के संज्ञान में होने के उपरांत भी भारत में एक बड़ी जनसंख्या प्राथमिक शिक्षा से विहीन है। उसके जीवनस्तर की गिरावट का कारण उचित शिक्षा का अभाव है अथवा शिक्षा के अभाव के कारण जीवनस्तर की गिरावट है, यह व्यक्तिविशेष ही जानता है किंतु गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, उच्च जीवनस्तर की आधारशिला होती अवश्य है।

सदियों बाद प्राप्त हुई स्वतंत्रता ने भारतवर्ष को लोककल्याणकारी राज्य के रूप में आकार दिया। एक ऐसा देश जहाँ शिक्षा, चिकित्सा एवं स्वास्थ्य हेतु जनता सरकारों पर निर्भर रही किंतु अपेक्षानुरूप कार्य नहीं हुए एवं इस कारण देश में मध्यम एवं उच्च वर्गीय परिवारों के बच्चों की शिक्षा असार्वजनिक क्षेत्र के विद्यालयों में संपन्न होती है। इससे जहाँ व्यवस्थापकों के बच्चों को भी असार्वजनिक विद्यालयों में सुविधापूर्ण शिक्षा प्राप्त होती है, जिस कारण सरकारी विद्यालयों की गुणवत्ता में कोई सुधार नहीं होता।

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अपने सामाजिक दायित्वों के प्रति जागरूक संत समाज ने सामाजिक परोपकार एवं समाज सुधार के कार्यों में हमेशा रुचिकर संलग्नता दिखाई है। वृंदावन के वात्सल्यग्राम नामक सेवाप्रकल्प की अधिष्ठात्री परमपूज्य दीदी माँ साध्वी ऋतंभरा को संपूर्ण देश एक समाजोन्मुखी संत के रूप में जानता है। शैक्षणिक ज्ञान के प्रसार हेतु परमआदरणीय दीदी माँ जी ने कृष्ण ब्रह्मरतन विद्या मंदिर की नींव रखी जिसमें पिछड़े तबके के बच्चों के लिए शिक्षा, स्वास्थ्य, पोषण एवं रहन सहन की पर्याप्त व्यवस्था के साथ अन्य क्रियाकलापों के माध्यम से गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान की जा रही है। इस प्रकल्प के संरक्षक श्री ब्रह्मरतन जी अग्रवाल का सान्निध्यपूर्ण सहयोग अनुकरणीय रहा है।

व्यवस्थापक मंडल के रूप में श्री संजय भैया जी, स्वामी जी, सुमन दीदी का विशेष सहयोग इस शैक्षणिक सेवाप्रकल्प को प्रगति के मार्ग पर ले जा रहा है। श्री ओमप्रकाश जी बंसल एवं श्री कृष्णमुरारी जी का विशेष सहयोग उन्हें साधुवाद का पात्र बनाता है।

कृष्ण ब्रह्मरतन विद्या मंदिर की बागडोर एक प्रखर विद्वान, एक शिक्षाविद, मृदुभाषी एवं सरल स्वभाव के स्वामी आचार्य श्री शिशुपाल सिंह जी के हाथों में है। आदरणीय आचार्य जी का शिक्षा के क्षेत्र में विशेष योगदान रहा है। विद्याभारती के वृंदावन स्थित वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय के प्राचार्य रह चुके हैं जिनके प्रेरणामय उद्बोधनों से, अनुशासन से एवं आशीर्वाद से अनेकों शिष्य विभिन्न सेवाओं में समाज की सेवाएं दे रहे हैं। आचार्य जी की विशेष रूचि छात्रों में पाठ्यक्रम के प्रति रूचि जगाना है तो वहीं संस्कारों के माध्यम से उनके जीवन में नैतिकता का भाव उत्पन्न हो, ये भी उनका उद्देश्य है जिससे ये समाज एक उत्तम समाज के रूप में वैश्विक स्तर पर परिभाषित हो।

मात्र १५ बच्चों के साथ आरंभ हुए इस विद्यालय में आज ३०० से अधिक विद्यार्थी अध्ययनरत हैं, जिसमें स्वाबलंबन के भाव को जागृत रखने हेतु न्यूनतम शुल्क में अधिकतम सुविधाओं का आधारभूत शैक्षणिक प्रतिकृति खड़ा करना ही इस विद्यालय का उद्देश्य है। कृष्ण ब्रह्मरतन को २०१९ में बेसिक शिक्षा परिषद से कक्षा ५ तक मान्यता प्राप्त है। “आत्म निर्भर भारत” योजना के अंतर्गत बच्चों में कौशल विकास के माध्यम से स्वाबलंबी बनाने एवं तकनीकी शिक्षा देने हेतु भारतीय संस्कृति एवं नैतिक शिक्षा पर आधारित संस्कारों से परिपूर्ण वातावरण में अप्रैल २०२१ से बालिकाओं हेतु कक्षा ६ को भी आरंभ किया गया है।

शिक्षा की गुणवत्ता विद्यालयों के ढाँचे और आधारभूत संरचनाएँ तय नहीं करतीं। गुणवत्ता तय होती है सेवा भाव से, शिक्षकों की संवाद स्थापित करने की पद्धति से जिसके ऊपर आदरणीय आचार्य जी सदैव क्रियान्वित रहते हैं।

गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, आध्यात्मिक एवं शांत वातावरण के साथ नैतिक व्यक्तित्व निर्माण का केंद्रबिंदु बन चुका ब्रह्मरतन विद्या मंदिर, आज क्षेत्र के निम्न आयुवर्ग के अभिभावकों के लिए एक उम्मीद की किरण है। सरकारी विद्यालयों में शैक्षिक वातावरण का सर्वथा अभाव एवं गैर-सरकारी विद्यालयों में अत्यधिक शुल्क ऐसे बच्चों को शिक्षा से कहीं वंचित न रख दें, इसी विमर्श की प्रतिकृति है कृष्ण ब्रह्मरतन विद्या मंदिर।

शिक्षा के ऐसे मंदिरों के निर्माण मानव जाति के कल्याणकारी प्रकल्प हैं। समाज निर्माण में ऐसे प्रकल्पों का अतुल्य योगदान ही भारतीय समाज को वैश्विक दृष्टि से सामाजिक समरसता का आधारबिंदु बनाता है।

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