वृन्दावन के वात्सल्यग्राम स्थित है मीरा माधव निलयम रिसोर्ट। प्राकृतिक छटा ऐसी कि शांति की माला में संगीत के मोती पिरोते पंछी आज भी जब पूरे वृन्दावन कहीं नहीं मिलते, वो आपको मीरा माधव निलयम में दिखते हैं, मिलते हैं, गीत और संगीत की एक सांझी शाम आपके लिए सहेजते हैं। मीरा माधव निलयम – नाम में ही रस है, मीरा का माधुर्य, माधव का मोह और निलयम की अनुपम सांस्कृतिक विरासत।
कभी आइये वृन्दावन तो इस रिसोर्ट में आराम के लिए नहीं, प्रकृति को महसूस करने आइये। यहाँ साँझ सवेरे खिड़की पर गौरैया आकर कुछ कह जाती है। कभी मद्धम, कभी तेज।
कंक्रीट के बियाबान में जब मन अकुलाने लगे तब पहाड़ों और वादियों की महंगी यात्रा का मोह त्याग वृन्दावन के वात्सल्यग्राम स्थित इस रिसोर्ट आना आपको अधिक श्रेयस्कर लगेगा।
यहाँ एक रोचक तथ्य ये है कि प्रकृति से मानव, इतना दूर हो गया कि इन पंछियों से मिलना और इन्हें समझना बहुत मुश्किल ही नहीं रहा, अपितु असंभव हो गया है। भाषा आज भी कितनी कमजोर है, विज्ञान आज भी कितना असहाय है। रोबोट से सर्जरी करा लेने वाले हम, फोन, टीवी, और शहरों को भी स्मार्ट बना देने वाले हम, एक चिड़िया की भाषा को समझने में असहाय हैं, ये प्रकृति से हमारी दूरी दर्शाता है।
अगर ये दुनिया भी हैरी पॉटर का हॉग्वाट्स स्कूल होता तो हम सब आपस में बातें कर एक दूसरे को समझ सकते। शाम को पेट्रोल महंगा होगा, जाकर टंकी फूल करालो वाला भविष्य का ज्ञान देता तोता हमें संकटों से बचा, सही निर्णय लेने में मदद करता। मगर ये हो न सका, तो उसका दुःख भी क्या मनाना।
लेकिन एक समय जब इंसान ने भाषा और लिपि नहीं बनाई थी, तब हर शब्द, ध्वनि, बराबर थीं। संगीत में भी सात स्वर, सात जीवों से लिए गए हैं।
बादलों को घुमड़ते देख ख़ुशी में मोर जो ध्वनि निकालता है, वही “सा” है। गौमाता जब अपने बछड़े को ढूंढ मार्मिक स्वर में उसे पुकारती है वही ऋषभ यानि “रे” है। झुंड में मिमियाती बकरियां “ग” ही कहती हैं। भूख से व्याकुल बगुला “म” स्वर में रोता है। स्वरों कोकिला, कोयल, जब बसंत के सुहाने मौसम में अपनी वसुधा की सुंदरता का बखान करती है, तो वह “पंचम स्वर” लगाती है। घोड़े की हिनहिनाहट में जो स्वर है, वही धैवत यानि “ध” है। हाथी जब मतवाला होता है, तब उसका चिंघाड़ना “नी” यानि निषाद बन जाता है।
आज भी गांव में भैंस, भेड, बकरी, गाय आदि से संवाद स्थापित करते समय लोग विभिन्न प्रकार की ध्वनियों का इस्तेमाल करते हैं। भोजपुरी, अवधी, पंजाबी, राजस्थानी आदि लोकगीतों में भी कुछ निश्चित ध्वनियाँ हैं, जिनका प्रयोग किया जाता है, जैसे, हे, ओहो, अरररर, सरररर आदि।
महत्वपूर्ण ये नहीं है, कि कौन कैसी ध्वनि निकालता है। महत्वपूर्ण ये है कि हमारे आसपास की ध्वनियों को सुनने के अभ्यस्त हम बचे भी हैं या नहीं? हमारे आसपास कौन क्या कह रहा है, वो हम समझ पा रहे हैं?
शायद नहीं।
संभव है कि आपके शहर, मूड और आसपास के शोर में आप कुछ सुनना भूल गए हों। उस शांत वातावरण में, अपने मन की ख़ामोशी की आवाज सुनने के लिए, समय निकालिये।
मीरा माधव निलयम की खासियत ही है, आध्यात्मिक शांति, आवाज देकर बुलाती गौरैया, वानस्पतिक सुख और आनंदित करता खिड़की पर आवाज लगाता खगकुल, जो शायद देर से सोने पर ताना मारे आपको,
“इतनी देर तक कौन सोता है”???