संस्कारम – आज की अनिवार्यता, कल का आनंद
एक देश के रूप में भारत एक विश्व शक्ति बन चुका है और आर्थिक पैमाने पर बढ़ता सकल घरेलु उत्पाद भी इस बात की ओर इंगित करता है कि आने वाली सदी, एक देश के रूप में, भारत की ही होगी। आर्थिक एवं व्यावसायिक स्तर पर देश की प्रगति, खुशहाल समाज की ओर हमारे कदमों को मजबूत करती है लेकिन एक समाज के रूप में भी, क्या हम उतने ही सुदृढ़ हो पा रहे हैं?
कोरोना काल में लोगों का अपने माँ बाप को अकेले छोड़ देना, हुतात्माओं को अंतिम संस्कार के लिए प्रियजनों का न होना, लगातार बढ़ते आपराधिक प्रसंग, सामाजिक असुरक्षा के शिकार बुजुर्ग, महिलाएं और बच्चे, हमारे संवेदनहीन समाज का कुरूप चेहरा दिखाते हैं। हमें ये बताते हैं कि आर्थिक सफलता, यशस्विता और प्रसिद्धि ही सब कुछ नहीं है। संस्कारों की पौध का अगली पीढ़ी में रोपण भी उतना ही अनिवार्य है जितना आर्थिक एवं व्यावसायिक उन्नत होना।
पिछले दिनों एक पुत्र ने अपनी माँ का अंतिम संस्कार ये कहकर नहीं क्या कि उसने(पुत्र ने) धर्म परिवर्तन कर लिया है और माँ को धर्मान्तरित व्यक्ति के धर्मानुरूप अंत्येष्टि क्रिया में सम्मिलित किया जाये। विवाद बढ़ने की स्थिति में महिला की पौत्री हजार किलोमीटर का सफर तय कर आई और अंत्येष्टि की गई। एक अन्य प्रसंग में एक महिला की कुछ महीने पुरानी लाश का संस्कार पड़ोसियों ने किया क्यूंकि पुत्र अमरीका में नौकरी करता था। महिला अकेले रहती थी।
ये एक नई समस्या है जो हमारे समाज के सम्मुख मुँह बाए कड़ी है। इन समस्याओं का यदि कोई शाश्वत समाधान है तो वो है बच्चों को संस्कारों के उचित मार्ग पर लाना, उन्हें संवेदनशील बनाना अपने रिश्तों के प्रति, अपने मित्रों के प्रति, अपनी जलवायु, प्रकृति, पशुपक्षियों के प्रति, उन्हें उन्नत किया जाये संस्कारों की निधि से, उनके हाथ चलें तो संवेदनाओं की महक उठे, उनका हर क्रियाकलाप ये देख कर हो कि उसका निकटवर्ती ही नहीं दूरगामी भी, परिणाम कहीं हमें या अन्य किसी को भी नकारात्मक रूप से प्रभावित तो नहीं करेगा।
वृन्दावन नगर के वात्सल्यग्राम में परमपूज्या साध्वी दीदी माँ ऋतंभरा जी का प्रवास है जहाँ उनकी प्रज्ञा और मेधा का लाभ, संविद गुरुकुलम में अध्ययनरत बालक बालिकाओं को समय समय पर मिलता है। इन विशेष उद्देश्य से प्रायोजित कक्षाओं को संस्कारम के नाम से जाना जाता है और इन कक्षाओं का एकमात्र उद्देश्य इन भविष्य के उन्नत नागरिकों के मन में राष्ट्रप्रेम, अपनत्व, सहयोग एवं संवेदनशीलता का बीज रोपित करना है जिसके ब्रह्मांड बन जाने पर समस्त जगत उन शिक्षादीक्षाओं से गौरवान्वित हो सके।
संस्कारम की कक्षाओं में कोई कोर्स से संबंधित पाठ नहीं होता, वो तो बच्चे अपने विद्यालय में पढ़ ही लेते हैं लेकिन यहाँ उन्हें कहीं से भी प्राप्त न हो सकने वाला ज्ञान मिलता है जो उनके बालमन को अच्छी शिक्षाओं के माध्यम से प्रसन्न रहना सिखाता है, उन्हें बुजुर्गों के सम्मान और छोटों से प्रेम का जीवन में महत्व बताता है, उन्हें आने वाली चुनौतियों से अवगत कराता है, उनसे निपटने के उपाय बताता है। संस्कारम की कक्षाओं का महत्व, समाज की आधारभूत संरचना का संवर्धन करना है ताकि ये सभी बच्चे जब अपने अपने समाज में एक समझदार नागरिक बनकर रहें तो उन्हें सही और गलत की तार्किक समझ हो, वो एक नागरिक होने के अधिकारों से अधिक कर्तव्यों की चर्चा करें। एक सामाजिक इकाई के रूप में मुफ्त सुविधाओं का लाभ लेने की जगह लोगों को सहयोग करें।
संस्कारम एक प्रयोग है, जो अपने असर निश्चित रूप से आने वाले भविष्य में दिखाएगा किन्तु इसके प्रसार प्रचार के माध्यम से ऐसी अनेकों कक्षाओं की महती आवश्यकता हम सभी को है, ताकि एक सामाजिक सुरक्षा सभी को उपलब्ध हो, वृद्धाश्रमों में पलते बुजुर्गों की संख्या कम हो और सामाजिक स्तर पर हम विश्व की सबसे उन्नत श्रेणी में स्थान पा सकें।