कृतज्ञता एवं विनीत होने का महापर्व, गुरुपूर्णिमा, भारतीय सामाजिक अस्मिता के शीर्षबिंदुओं में से एक है। ये पर्व अपने आप में सांस्कृतिक समृद्धि का, वैचारिक नम्रता और सामाजिक उन्नति का महापर्व है।
यूँ तो किसी के सम्मुख झुकना एक दीन भाव है, लेकिन जो इस दीन भाव को भी महान बना दे, वही सांस्कृतिक विरासत है भारतवर्ष की। ये पर्व हमें विनम्र होना सिखाता है। गुरु के प्रति, गुरु स्वरुप माँ प्रकृति के प्रति, माता पिता के प्रति, समाज और देश के प्रति, हमारी सफलता के प्रत्येक मील के पत्थर के प्रति अपने सहज एवं सरल रूप में कृतज्ञता प्रकट करने का महापर्व है गुरुपूर्णिमा।
गुरु – जिसका महत्व ईश्वर से ज्यादा भारतीय वांग्मय में बताया गया है। गुरु – जिसकी कृपा सफलताओं के गिरि पर्वत चढ़ने के लिए आवश्यक है। गुरु – जिसके अनुभव से हमें सही और गलत का अंतर समझ आता है। गुरु – जिसकी शिक्षा हमें पशुता से मनुष्यत्व की यात्रा पर आगे बढाती है। गुरु – जिसकी परीक्षाओं की कठिनाई हमें चुनौतियों के समक्ष कठोर और अजिंक्य बनती हैं। गुरु – जिनकी कसौटी हमें तौलती है, सफलताओं के अहंकार से बचने के लिए।
गुरुपूर्णिमा, उस गुरु को श्रद्धासुमन अर्पित करता महापर्व है, जो हमें, हमारी अनेकों क्षमताओं, सफलताओं और सामर्थ्यों के बोझ को उतार कर फिर से हममें सहजता, सरलता एवं विनम्रता के नवांकुर स्फुटित करता है। गुरुपूर्णिमा महापर्व है आनंद का, उल्लास का, अपने योग्य होती प्रक्रियाओं के प्रति कृतज्ञता प्रदर्शित करने का।
विश्व के प्रथम गुरु माने जाते हैं महादेव शिव शम्भू। भोले बाबा, जो गुरु है, देवताओं के गुरु बृहस्पति और असुरों के गुरु शुक्र के। जो पहले अघोर हैं, अघोर अर्थात, जो भेदभाव से बहुत ऊपर हैं। जिनके लिए अच्छे और बुरे का कोई भेद नहीं, कोई भाव नहीं। जो अपनी बारात में देवों के साथ दानवों के नृत्य का आनंद लेते हैं। जो सज्जनों को दर्शन देते हैं तो दुर्जनों के मन की इच्छा भी पूर्ण करते हैं।
शिव सम है, सरल हैं, साधन और साध्य भी हैं। शिव को साधने के लिए न कोई साधन चाहिए न कोई साधना। शिव सरलता से सधते हैं। सध जाएं तो अशेष आशीषों की वर्षा कर दें, कुपित हो जाएं, तो तृतीय नेत्र खोल विध्वंस कर दें। शिव जो सिखाते हैं जीवन में संतुलन का महत्व। जो सिखाते हैं नारी सम्मान का महत्व, जो योग्यता से नहीं भाव से प्राप्य हैं, जिनके लिए सृजन और विध्वंस उनकी दो भुजाएं हैं। महादेव जिनकी स्तुति होने को एक लोटे जल से भी संभव है, तो क्या कुछ नहीं चढ़वा लें जब रुद्राभिषेक कराएं। शिव, जिनके बिन संसार शव है। शिव जो हलाहल को भी कंठ में धर लें। शिव जो आदियोगी हैं, सत्य का सुंदरतम स्वरुप हैं, जो सरलतम प्रयास से भी सध जाएं, नहीं तो जन्मजन्मांतरों के तप अनर्थ।
सावन के इस शुभारंभ के अवसर पर आइये विश्व के सर्वप्रथम गुरु को नमन करें। आप सभी को गुरुपूर्णिमा की अशेष शुभकामनाएं।