पक्षी जब जलस्त्रोत से जल ग्रहण करते हैं तो यूँ लगता है कि ऋण का नीर हो। अन्न के कुछ कण भी यूँ चुगते हैं जैसे धरती इनकी सौतेली माँ हो। चौके से कुछ खाते भी हैं तो चोरी के भाव में डरे रहते हैं। खटका होते ही भाग जाते हैं।
इन पंछियों की नींद भी रुई सरीखी होती है, एकदम हल्की। लगता है जैसे इनकी नींद में भाप भरी हुई है, फुर्र से उड़ जाती है। संशय के कारण एक संकुचित सी नींद लेना चिंता से भर देता है। इन पक्षियों को एकटक निहारते रहने से जीवन में असीमित आमोद प्रमोद भरा जा सकता है। वेदों में इन्हे यूँ ही ईश स्वरुप नहीं कहा गया है। इनकी सुंदरता रहस्यमयी है। उनका जीवन और मरण एक उत्सव है।
ये खगकुल बहुत समृद्ध संकुल है। लम्बी यात्रा करने वाले कई प्रवासी पंछी हवा को अपने पैरों से तौलते हुए सो भी लेते हैं। आँखों में रात काट देते हैं। अपने प्राणों पर संकट उन्हें चैन से सोने नहीं देता। वो कभी निश्चिंत नहीं रहते। कभी किसी पक्षी को आपने निश्चिंत, निर्भय, अचल, स्थिर देखा है?
प्रश्न ये है कि इनका संशय, इतना भय, इतना अविश्वास इनके कोमल मन में कैसे आया, किसने भरा? इस भय का कोई उपाय मानव ने कभी क्यों नहीं खोजा? क्या बाल्यकाल से हमें वो संस्कार, वो प्रेम, अपनत्व का भाव नहीं मिला, जिसके हम अभिलाषी हों?
इस अनुत्तरीय प्रश्न का उत्तर ढूंढ़ते हुए एहसास होता है कि करुणा और प्रेम का भाव यूँ अचानक प्रकट नहीं होता। मारकाट के माहौल में बड़ा होता बचपन कभी करुणा को अपने ह्रदय में स्थान नहीं देगा। प्रकृति की गोद से वंचित बालक जब बड़ा होगा तो विकास की आंधी में वो पेड़ पौधों को बाधा ही समझेगा और उस अंधे विकास के पथ पर अपने कंक्रीट के जंगल बिछा देगा जिसकी कीमत पर होगा अनगिनत पंछियों का भय, डर और पेड़ पौधे जो अब नहीं रहेंगे।
वृन्दावन के वात्सल्यग्राम में एक ऐसा ही प्रयास किया गया है जिसमें कोमल बाल मन में प्रकृति को माँ के रूप में दिखा पंछियों, पशुओं और पेड़ पौधों से प्रेम करना सिखाया जाता है। नन्ही दुनिया नामक इस प्रकल्प में छोटा सा किन्तु महत्वपूर्ण प्राकृतिक स्थल बनाया गया है जिसमें छोटी सी कुटिया है, नन्हे नौनिहालों के लिए कृत्रिम पशु पक्षी बनाये गए हैं, अध्यात्म की चिर ज्वलंत लौ है, जिससे बच्चों को प्राकृतिक सान्निध्य मिले, माँ प्रकृति के आशीष में वो रहना सीखें, उन पंछियों को अपने पास पाएं जिन्हे वो शायद वो किताबों और कहानियों में देखते हैं, लेकिन समझ नहीं पाते।
आइये उन पंछियों के कोलाहल में छिपे संगीत से अपने बच्चों के जीवन में सुर लय और ताल की नदी बहाएं, उन्हें करुणा और दया का भाव दें, उनके कोमल मन मस्तिष्क में पंछियों की वो पवित्रता स्थापित करें जिसमें वो पावन जीवन समाया है। आइये नन्ही दुनिया घूम कर आएं।