नारी के नारायणी होने के भाव का जीवंत रूप: माँ सर्वमंगला पीठम
स्त्रीत्व का सर्वोत्तम रूप होता है मातृत्व लिए हुए एक माँ का रूप, जिसमें स्त्री जहाँ अपने बालक के लिए भावनाओं के कोमलतम भाव में सन्निहित होती है तो उसकी रक्षार्थ पाषाणिक कठोरतम रूप को भी साध लेती है। स्त्री का आधारभूत चिंतन ही है वात्सल्य लिए हुए, जिसमें कभी वो माँ प्रकृति का रूप धरती है तो कभी माँ गंगा और नर्मदा, कभी वो स्वयंभू धरा होती है तो कभी आदिशक्ति स्वरूपा माँ जगदंबा जी प्रतिपल हमारे उद्धार का चिंतन लिए हमें आशीषों के साए तले रखती है।
सनातन की संस्कृति नारी को पूजने की है, उसके गुणों को सहेजने की है, तभी तो कहा भी जाता है –
यत्र नारी पूज्यन्ते, रमन्ते तत्र देवता !!
नारी हमारे अवचेतन मन में माँ जगदंबा है। कन्यापूजन हमारे समाज का सामाजिक चिंतन है, माँ के चरणों तले स्वर्ग का भान सनातनी स्वरुप है। माँ भगवती के दर्शन, पूजन और आध्यात्मिक चिंतन सत्मार्ग पर ले जाने का सहज मार्ग है। प्रभु श्री राम ने भी उस कल्पना को ही विस्तारित किया है जिसमें कहा गया है –
जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी !!
वृंदावन के वात्सल्यग्राम में भी माँ भगवती के मंगलकारी रूप के विग्रह का निर्माण आध्यात्मिक ज्ञान एवं शांति का एक भव्य केंद्र होगा। माँ सर्वमंगला पीठम नामक इस शक्तिपीठ के निर्माण में तीन छतें होंगी जो एक दूसरे के ऊपर होंगी किंतु बिना किसी सहारे के।
ये तीन छत तम, रज और सत्व गुणों का भाव प्रस्तुत करेंगी जिनके माध्यम से इन तीनों गुणों का संबंध समझने में सरलता होगी। ईश्वर एवं भक्त के बीच का संबंध इन्हीं तीनों गुणों के माध्यम से सतत चलता रहता है। इस शाश्वत भाव के साथ ही इन तीनों छतों का निर्माण होगा।
इन तीनों छतों के नीचे प्रतिष्ठित होगा माँ भगवती त्रिपुर सुंदरी का दिव्य एवं भव्य मंदिर। इस मंदिर के भूतल पर चारों युगों, सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग एवं कलयुग में स्त्री द्वारा स्त्री की सम्पूर्ण सृष्टि यात्रा को आधुनिक तकनीक एवं पुरातन गरिमा के साथ इस अनुभालय में अनुभव किया जा सकेगा। इस अनुभव के माध्यम से आज की नारी आत्मस्थ होकर अपनी पौराणिक गरिमाओं का पुनः स्मरण कर, यथार्थ में माँ सर्वमंगला के स्वरुप में रम सकेगी। इसके अतिरिक्त एक नयनाभिराम प्रदर्शनी के माध्यम से भारत की गौरवशाली गाथाओं का भी प्रदर्शन किया जायेगा।
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