एक माँ, एक सपना और वात्सल्य का संसार

By June 8, 2021September 18th, 2023Blog

माँ – अनेकों रूपों, गुणों, भावों और विचारों में वर्णित ईश्वरीय आस्था का मानवीकरण, जिसकी इच्छा, खुशियां, शौक, कुछ भी अपना नहीं। सब कुछ समर्पित, त्याज्य और अपने बच्चों की मुस्कान से खुश होती वो ईश्वरी, अपनी मुस्कानों और खुशियों के लिए भी निर्भर है अपने नौनिहालों पर, बढ़ते बच्चों पर, जो कितने भी बड़े हो जाएं, पद में, प्रतिष्ठा में अथवा उम्र में, उसके लिए वही रहते हैं- वही भय्यू, वही अल्पू, और उसका वही लाडला मर्फी।

मातृत्व भावनाओं के सागर में झूमती एक अविरल धारा का नाम है। सेवा, त्याग और समर्पण के इस मिश्रित रूप को वात्सल्य भी कहा जाता है। उस ईश्वरीय गुण की अगाध आस्था के समर्पित पुष्पित भाव को ही कहते हैं – माँ। चोट लगने पर जो रात भर न सो सके, पिता की डांट से गुस्सा जाये, खाती नहीं वो जब तक तुम्हें न खिला दे, खुद कुछ भी पहने – तुम्हें रंग पहनना सिखाती है, चहकना भी, उंगली पकड़ चलाती है, गिरने पर हौसला देती, छोटी सी बात पर चहक जाती, घर से निकलने पर मुट्ठी में वही पांचसौ का नोट दबा देती, जरुरत नहीं है कहने पर भी चुपचाप रख ले, कहकर रख देती, जैसे आशीर्वाद देने का यही तरीका आता है उसे।

पारिवारिक जीवन की इस माँ को हम सब जानते हैं। माँ होना मुश्किल है, बहुत मुश्किल, लेकिन इस भाव को शक्ति मिलती है अपनत्व के भाव से। अपना बच्चा, अपना घर, अपने लोग- सबको प्रिय होते हैं, लेकिन ये अपनत्व का ऐसा भाव भी है जो आत्मकेंद्रित बनाता है। आत्मावलोकन से दूर आत्मसमर्पित करता है और आई, मी एंड माइसेल्फ तक रोक देता है।

इस पारिवारिक माँ जैसी एक माँ और भी है, जिसके वात्सल्य के लिए उसका बेटा होना कोई जरुरी नहीं, जो समर्पित है समाज की माताओं, बहनों और त्याग दिए गए बच्चों को। इस माँ के वात्सल्य में कोई भेदभाव नहीं, कोई बड़ा छोटा नहीं, कोई अपना पराया नहीं, सबको प्रेम और समर्पण के भाव के साथ रिश्तों की रेशमी डोर में बांध लेतीं ये माँ सनातन की ध्वजवाहक हैं। हमें संस्कृति और संस्कारों का महत्व बताती हैं, होली पर हमारे जीवन को रंगों से भरने का आशीर्वाद देती हैं, इनके लिए आपके सोशल स्टेटस, बैकग्राउंड और एजुकेशन से कोई मतलब नहीं। सिर्फ प्रेम और वात्सल्य की इस देवमूर्ति को हम और आप दीदी माँ जी के नाम से जानते हैं। सरल, सौम्य और सनातन के सद्गुणों से समाज को सद्बुद्धि की ओर प्रेरित करती हैं परम पूज्य दीदी माँ ऋतंभरा जी।

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भावों के सागर का नाम है वात्सल्यग्राम 

वात्सल्यग्राम के परिवार में जो भाव बहते हैं, उन भावों का मूलतत्व है – मातृत्व, 

दीदी माँ जी ने जिस अद्भुत संसार को वात्सल्यग्राम का स्वरुप दिया है, उसमें एक यशोमती मैया है जिसके बच्चों से उसका कोई रक्तसम्बन्ध नहीं है लेकिन मातृत्व का भाव वही है जो एक सगी माँ का हो सकता है। दीदी माँ सनातन की उस उन्नत परंपरा का पर्याय हैं जिसमें भारतीय माताओं को हर विधा का ज्ञान होता है। दीदी माँ अपने बच्चों से हमेशा कनेक्टेड रहती हैं, सबकी चिंताओं से बंधी रहती हैं, इसीलिए संस्कारम जैसे प्रकल्पों को मूर्तरूप भी देती हैं। सांसारिक बदलावों से भी परिचित हैं, मैकॉले के षड्यंत्रों के बारे में भी जानकारी देती हैं जनमानस को तो वैक्सीन के प्रचार से लोगों को जागरूक भी करती हैं। 

दीदी माँ महिला सशक्तिकरण का भारतीय संस्करण हैं – विशुद्ध सनातनी। रामजन्मभूमि आंदोलन का एक प्रखर बौद्धिक स्वरुप, जिनका बालमन मंदिर निर्माण के बारे में जानकर नाचने लगता है। जो छोटे बच्चों की मासूमियत लिए खुलकर, मुस्कुराकर और सबको अपना मानकर रहती हैं।

दीदी माँ की दूरगामी सोच का अंदाजा वात्सल्यग्राम को देखकर लगाया जा सकता है जिसमें उन्होंने अनाथालय, नारीनिकेतन और वृद्धाश्रम की धारणा के विपरीत वात्सल्य से परिपूर्ण एक ग्राम का निर्माण किया। रोटी देने की जगह रोटी कमाने लायक बनाया। बेचारगी के दीनपूर्ण भाव से मुक्त कर वात्सल्यग्राम की बेटियों, माओं, और दादी/नानी को आत्मबल से परिपूर्ण किया। लोगों को एक दूसरे के साथ माँ, बेटी, दादी, मौसी, नानी जैसे अपनत्व के भावों से भर माँ वत्सला होना सिखाया।

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आज भी दीदी माँ जी की अनेकों बेटियां देश के अनेको विश्वविद्यालयों से शिक्षित हो रही हैं। अपनी बेटियों को पीअर प्रेशर से बचाकर सत्मार्ग पर आगे बढ़ाने के लिए दीदी माँ प्रतिदिन बात करती हैं। इनमें से कोई मेडिकल डॉक्टर बन रही है, कोई इंजीनियर और वकील लेकिन इन आत्मीय रिश्तों से बंधे संबंधों में एक चीज है – माँ का वात्सल्य, जो दीदी माँ जी ने दिया है, सभी को।

आज मातृदिवस के अवसर पर जरुरी है दीदी माँ को सम्मान प्रदर्शित करने की जिन्होंने आत्मकेंद्रित व्यवस्थाओं की भीड़ में भी, समाजकेंद्रित रहने का लक्ष्य निर्धारित किया, उसपर चलीं और अनेकों लोगों को प्रेरित किया। खून के रिश्तों से ज्यादा आत्मीय होते हैं भाव के रिश्ते, वात्सल्यग्राम के गोकुलम में ये भी देखा जा सकता है।

महिलाओं को स्वाभिमान के साथ स्वाबलंबन के मार्ग पर चलना भी सिखाती हैं दीदी माँ जी। संविद एक्सपर्ट स्कूल बानगी है इसकी और इसीलिए देश मानता है, अपनी पारिवारिक माँ से बड़ी हम सबकी माँ हैं परम पूज्य दीदी माँ ऋतंभरा जी।

समाज आपका ऋणी सदा रहेगा। आपके श्री चरणों में शत शत नमन।

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