1857 का स्वाधीनता संग्राम अपने आप में एक अनूठा प्रयास था। संचार के साधनों का अभाव, हथियार और कुशल लड़ाकों के अभाव के साथ ही साथ सक्षम नेतृत्व का सर्वथा अभाव के बाद भी स्वाधीनता संग्राम की इस ऐतिहासिक लड़ाई ने अंग्रेजों की चूलें हिला दी थीं।
इस संग्राम की एक बहुत बड़ी मार्गदर्शक और प्रणेता थीं महारानी लक्ष्मी बाई। महारानी लक्ष्मी बाई साक्षात शक्तिस्वरूपा थीं। एक अकेली महिला जिसने ओरछा और दतिया राज्य की सम्मिलित सेनाओं को हराया, ग्वालियर जैसे बड़े राज्य की सेनाओं को हरा वीरता और सक्षम नेतृत्व का परिचय दिया। कुशल युद्धनीति की माहिर रानी लक्ष्मीबाई शस्त्र प्रशिक्षण की महिलाओं के लिए वकालत करती थीं।
अपने सिर को उठाकर चलने का नाम हैं रानी लक्ष्मी बाई। आरामदायक गुलामी से कष्टप्रद संघर्ष को चुनने वाली मूर्तरूप हैं रानी लक्ष्मीबाई। महिलाओं के सशक्तिकरण की साक्षात रूप हैं रानी लक्ष्मीबाई। मानवता के महिलारूप का नाम हैं महारानी लक्ष्मीबाई।
आधुनिक भारत की पहली महिला सशक्तिकरण का पर्याय रही हैं महारानी लक्ष्मीबाई। अंग्रेजों ने महारानी लक्ष्मीबाई को ६० हजार की पेंशन के साथ अन्य सुविधाओं का प्रस्ताव दिया था, जिसके जवाब में महरानी लक्ष्मीबाई ने अंग्रेजों को इंकार भिजवा दिया।
आज ही के दिन १८५८ को महारानी लक्ष्मीबाई का देहांत हुआ। ये उनकी जिजीविषा की पराकाष्ठा ही है जिसमें उनकी मृत्यु युद्धक्षेत्र में हुई। वात्सल्य परिवार की ओर से महामानवी महारानी लक्ष्मीबाई को शत शत नमन।